मत कर माटी मन के आपन , सोझे बा तारापथ

है कोई मांई का लाल ? जिसका कबहूं  निराशा नाम के शैतान से  सामना ना हुआ हो ! है कोई ? हमसे तो भईया  ई ससुरा हमेशा मितला रहता है ।
मैं आज यहां यह लिख पा रहा हूं ! इस बात का प्रमाण है कि यह कभी मुझ पर हावी नहीं हो पाया है। जी हां ! मैं अभी जिन्दा हूं।
बहरहाल ! हमने कुछ पंक्तियां लिखने की गुस्ताखी कर दी है जो कुछ इस तरह से है

“ मत कर माटी मन के आपन
सोझे बा तारापथ ,
पकड़ ल अोके ! तनिक - सा उबाल मनोबल
मिल जाई उ हर मंजिल ,जब लेबा मन  ठानी
भरल बा क्षमता तोहरा में , ल ओके पहिचान ।।”

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